कब तक बटेंगे हम...



 


आपने कभी लकड़ी चीरने वाली मशीन देखी है? वो निरंतर चलती रहती है - घर्र-घर्र घर्र-घर्र। ऑपरेटर पहले लकड़ी का एक बड़ा ब्लॉक लेता है, और उसको इस पार से उस पार चला देता है। निरंतर चलती मशीन उसे दो टुकड़ों में चीर देती है। ये काम इतनी महीनी से होता है कि लकड़ी को भी उस पार निकल जाने के बाद ही पता चलता है कि दो टुकड़े हो चुके हैं। फिर ऑपरेटर उन टुकड़ों में से एक को उठाता है, फिर उसके दो टुकड़े करता है। फिर उसमें से एक टुकड़े को उठा कर फिर उसे चीरता है। वो तब तक यह काम करता रहता है, जब तक उसे अपने काम की साइज का टुकड़ा न मिल जाए। सियासत ऐसी ही मशीन है, और विभाजनकारी नेता इसके ऑपरेटर। और हाँ, आगे बढ़ने से पहले बता दूँ, बात इस पार्टी और उस पार्टी की नहीं है। ब्लेड बदलना एक क्रमिक प्रक्रिया है। सब ब्लेड एक जैसे होते हैं।
आपको क्या लगता है, हिन्दू और मुस्लिम को बाँट देने के बाद ये आपको एक रहने देंगे? भारत-पाकिस्तान बँटने के बाद दोनों ओर समस्याएँ और झगड़े खत्म हो गए क्या? जिसे बाँटना है, वो बाँटता रहेगा। उसे बस इतना पता होना चाहिए कि आप बँटने के लिए तैयार हैं। जो हरा और भगवा अलग-अलग कर सकता है, वो कल भगवा और केसरिया भी अलग करेगा, परसों केसरिया और चम्पई भी अलग करेगा, एक दिन चम्पई और पीला भी अलग करेगा। वो रंगों को तब तक बाँटेगा, जब तक उन बिखरे रंगों से अपने सपने बुनता रहे!
सोशल मीडिया में रोज के उन्माद से थक कर धार्मिक रूप से तटस्थ लोग एक तरफ बैठ गए हैं। एक्टिव सोशल मीडिया में अब हिन्दू-मुस्लिम वाली बात कम हो गई, क्योंकि लोग अपने-अपने खेमे में शिफ्ट हो गए। अब कोई विवाद नहीं हो रहा क्योंकि दोनों अपने-अपने बंकर से हवाई फायर कर रहे हैं। विवाद का विषय होते हैं तटस्थ लोग, जो इन्हें समझाने जाते हैं। दोनों तरफ के कट्टर तो कट्टर हैं ही, वो तो Convince होंगे नहीं, फिर Convince किसे करना है? - तटस्थ लोगों को। यानि विवाद का कारण वो लोग हैं जो कट्टर नहीं हैं। इस बीच तटस्थ लोग किसी एक पक्ष से Convince न होने के कारण दोनों तरफ की गाली पड़ने से शांत हो गए। 
अब आगे देखिए क्या क्या हो रहा है... 
उधर का बँटवारा हो गया तो अब आरी खेमों के अंदर ही चलने लगी है।  धार्मिक गुरुओं के शिष्यों में आपस की तकरार शुरू हो गई है... गुरु तो गुरु, ईश्वर को ले कर भी विभाजन है। एक दिन शैव और वैष्णव मतावलम्बियों को लड़ते देखा... सवर्ण-दलित चेतना फिर से उभर कर बाहर आ गई है... चाणक्य सीरियल के आधार पर ब्राह्मण-क्षत्रिय विवाद थमा भी नहीं था कि वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चैहान को ले कर राजपूत और गुर्जर भिड़ गए। बात मानिए, यह थमेगा नहीं। जब यह भी ठंडा हो रहेगा, तो राजपूतों-ब्राह्मणों-गुर्जरों के अंदर भी विभाजन के बिगुल फूँक दिए जाएँगे। आरी चलती रहेगी, हम बँटते रहेंगे। और सुनिए, अगर आप सोचते हैं कि ये आरी कभी तो रुकेगी, तो गलत सोच रहे हैं। आरी के चलते रहने के लिए बहुत Scope है अपने यहाँ। बाकी का तो ज्यादा पता नहीं, लेकिन मेरी जाति में 12 मुख्य Sector हैं। उन बारह में भी टाइटिल, मूल, स्थान और गोत्र के हिसाब से सैकड़ों। बँटिए, कहाँ तक बँटिएगा...


 


लड़ें, झगड़ें, भिड़ें, काटें, कटें, शमशीर हो जाएं


बंटें, बांटें, चुभें इक दूसरे को, तीर हो जाएं


मुसलसल क़त्ल-ओ-ग़ारत की नई तस्वीर हो जाएं


सियासत चाहती हैं हम ओ तुम कश्मीर हो जाएं


सियासत चाहती है नफरतों के बीज बो जाए


कि हिन्दी और उर्दू किस तरह तक़्सीम हो जाए
सियासत जानती है किस तरह हम पर करे काबू


वो ‘इंसां’ मार कर कर दे तुम्हें मुस्लिम मुझे हिन्दू
ज़रा ठन्डे ज़हन से मुद्द-आ ये सोचने का है


तेरी मेरी लड़ाई में मुनाफा तीसरे का है


सियासत की बड़ी लाठी से मारी चोट हैं हम तुम


न तुम मुस्लिम, न मैं हिन्दू, महज़ इक वोट हैं हम तुम


तो आख़िर क्यों हम उनका हासिल-ए-तदबीर हो जाएँ


सियासत चाहती है हम-ओ-तुम कश्मीर हो जाएं
अभी भी वक़्त है, बाक़ी मुहब्बत की निशानी है


अभी गंगा में धारा है, अभी जमना में पानी है
अभी अशफ़ाक़-बिस्मिल की जवानी याद है हमको


अभी अकबर की जोधा की कहानी याद है हमको


अभी रसखान के कान्हा भजन घुलते हैं कानों में


अभी खुसरो के होली गीत सजते हैं दालानों में


अभी शौक़त दीवाली में मिठाई ले के आता है


अभी दीपक अज़ादारी में मातम भी मनाता है
अभी भी वक़्त है, ऐसा न हो सब भूल कर हम-तुम


बदी के इक विषैले ख़्वाब की ताबीर हो जाएं


सियासत चाहती है, हम-ओ-तुम कश्मीर हो जाएं


-प्रबुद्ध सौरभ


 


आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों लेकिन युवा लेखक एवं रचनाकार, शब्दों के जादूगर, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आदरणीय प्रबुद्ध सौरभ जी का ये वीडियो पूरा जरूर देखिये...