वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे के वजह से इस साल नहीं लगा देवघर का विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला



रश्मि राजपूत


(स्वंतत्र लेखिका व कवयित्री, भागलपुर बिहार)


इस वैश्विक महामारी कोरोना में जिस श्रावणी मेले का बेसब्री से इंतजार रहता था वो इंतजार ही रह गया। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार देवघर स्थित कामना ज्योतिर्लिंग अति महत्वपूर्ण है। श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा अर्थात एक माह तक प्रत्येक वर्ष शिवभक्त सुल्तानगंज के अजगवीनाथ मंदिर के निकट उत्तर वाहिनी गंगा से जल लेकर 105 किलोमीटर पैदल यात्रा कर देवघर के रावणेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते थे। लेकिन इस वर्ष ये परंपरा टूट गयी। कोरोना को देखते हुए झारखंड सरकार ने देवघर मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दिया  श्रावण के महीने में बाबाधाम का महत्व बढ़ता है। इस अवधि के दौरान लाखों भक्त बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर आते हैं! बाबाधाम पहुंचने पर कांवरिया पहले स्वयं को शुद्ध करने के लिए शिवगंगा में डूबकी लेते हैं और फिर मंदिर में प्रवेश कर ज्योतिर्लिंग में गंगाजल चढ़ाते हैं। यह मेला किसी महाकुम्भ से कम नहीं है। सवा महिने तक चलने वाले इस मेले में हर रोज कांवड़ियों की भीड़ लाखों की संख्या पार कर जाती है। इस मेले में सिर्फ देश के कोने से ही नहीं विश्व भर के शिवभक्त आते हैं! झारखंड के देवघर में लगने वाले इस मेले का सीधा सरोकार बिहार के भागलपुर जिले के सुलतानगंज से है। सुलतानगंज में उत्तर वाहिनी गंगा के जल को सर्वप्रथम अजगैवीनाथ मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग में जल चढ़ा बोलबम के जयकारे के साथ कांवड़ियां नंगे पांव देवघर की यात्रा प्रारंभ करते हैं। देवघर स्थित शिवलिंग को शास्त्रों में मनोकामना लिंग कहा गया है।


यह देश के 12 अतिविशिष्ट ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह बैद्यनाथ धाम के भी नाम से जाना जाता है। इस बार नहीं गूंजा बोलबम का जयकारा तो वाकई असर पड़ा सबकी उम्मीदों पर। यह एक सिर्फ मेला नहीं सुलतानगंज से देवघर तक के क्षेत्र की बड़ी आबादी के लिए वार्षिक आजीविका का साधन है। सैकड़ो बरसों से आध्यात्मिक एवं धार्मिक परंपरा का निर्वाहन देश विदेश के शिवभक्त ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक कर करते थे। मान्यता है कि जब सावन में सभी देवी देवतागण विश्राम पर चले जाते हैं तो भगवान शिव व माँ पार्वती पृथ्वी पर रह भक्तों के कष्ट हरते हैं। यह मेला अमीर व गरीब की खाई मिटा देता है क्योंकि इसमें शामिल सभी शिवभक्तों को बम से ही संबोधित किया जाता है कुछ इस प्रकार छोटा बम, माता बम, काका बम इत्यादि। आनंद रामायण में वर्णित है कि भगवान श्री राम ने सुलतानगंज की उत्तर वाहिनी गंगा के जल से बैद्यनाथ धाम में स्थित ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया था, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर को सुलतानगंज के उत्तर वाहिनी गंगा का जल अत्यंत प्रिय है।सुलतानगंज में ऋषि जह्नु का आश्रम था। जब भगीरथ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर ला रहे थे तो कोलाहल से क्रोधित होकर ऋषि जह्नु ने गंगा का आचमन कर पी लिया किन्तु बाद में भगीरथ के निवेदन करने पर अपनी जंघा से गंगा को प्रवाहित किया जिसके कारण गंगा जाह्नवी कहलायी।


यह मेला अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा है। हजारों लोगों का उद्योग भी इससे जुड़ा है। साथ ही भाईचारा का भी संबंध बहुत मुसलमान भाई भी शिव की नगरी में केसरिया रंग में शामिल हो सुहाग का समान बेचते हैं खुशियों के साथ! इस वर्ष इस मेले का आयोजन नहीं हुआ कोरोना के कारण। लेकिन बहुत सी यादों को ताजा कर गया वो जंगलों , नदियों, पत्थरों पर नंगे पैर चलते हुए उत्साह के साथ बोलबम का जयकारा कर ज्योतिर्लिंग में जलाभिषेक के साथ आत्मा को जो तृप्ति मिलती थी वो इस बार सिर्फ यादों में है।उम्मीद है कि अगली बार देवों के देव महादेव की नगरी फिर से शिवभक्तों के जयकारे से गूंज उठेगी इस प्रकार बोलबम का नारा है बाबा एक सहारा है।


 


 


 


 


 


 


 


 


 



 


 


 


 


 


 


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