परीक्षा परिणाम और तनाव : अपने बच्चों के फेल होने या कम नंबर आने पर उनका हौसला न तोड़ें



-सीमा वर्मा


 


 


 10वीं और 12वीं के रिजल्ट घोषित हो चुके हैं। बड़ी संख्या में छात्रों को अच्छे नंबर मिले हैं तो बहुत से छात्र असफल भी हुए हैं, लेकिन क्या ये नंबर ही सफलता के पैमाने हैं? पढ़िये विशेष रिपोर्ट-



तुम कुछ नहीं कर पाओगे, कुछ बन नहीं पाओगे। पैसे नहीं कमा पाओगे। उनके बेटे को देखो, इतने अच्छे नंबर आए हैं, उसे अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल जाएगा। ऐसी तमाम बातें माता-पिता कम नंबर वाले लाने वाले बच्चों को सुनाएंगे। इसके बाद ही बच्चों का आत्मविश्वास डोल जाता है और वे कुछ अनर्थ करने की ओर बढ़ चलते हैं। इसलिए अपने बच्चों के फेल होने या कम नंबर आने पर उनका हौसला न तोड़ें।



बोर्ड के 10वीं और 12वीं के रिजल्ट घोषित हो चुके हैं और सुनने को मिल रहा है कि फलाने बच्चे ने इतने परसेंट लिए और ढिमकाने बच्चे ने इतने पर्सेंट लेकर टॉप किया। ब्च्चों के अच्छे नंबर आए खुशी की बात है। अच्छे मार्क्स आने पर बच्चे खुशियां मना रहे हैं पर सिर्फ दिखावे की अच्छे मार्क्स लाने के बाद भी बच्चा तनाव में है जैसे कि अगर किसी बच्चे के 96% मार्क्स आए तो बच्चा चाह रहा है कि 99 प्रतिशत आने थे जिसके 99 बने हैं वह सोच रहे कि हम 100 प्रतिशत आने थे 90 वाला बच्चा सोच रहा है इतने आने से हमें इतनी मेहनत की।  पता नहीं कैसी रेस में लग गई है बच्चों की, नंबरों के पीछे भाग रहे हैं और उनके भगाने वाला खुद पेरेंट्स और अध्यापक होते हैं। वह बच्चों के माइंड में यही तय कर देते हैं कि पढ़ाई का नाम ही सिर्फ नंबर लेना है और कुछ नहीं। अब एक बच्चे के 90% आए मार्क्स आए और उसके पेरेंट्स उस पर भी चिल्ला रहे हैं ट्यूशन लेने के बाद भी बस इतने मार्क्स है उस बच्चे को देखो 98% लेकर आया है। ये सब क्या है क्यों बच्चों पर प्रेशर बनाया जा रहा है? क्यों बच्चों की दूसरों के साथ तूलना की जा रही है? अगर बच्चों की बार-बार दूसरे बच्चों के साथ तुलना की जाएगी या उनको एडमिशन के नाम पर और कैरियर के नाम पर डराया जाएगा या उनको कम मार्क्स के नाम पर धमकाया जाएगा तो ऐसे में बच्चा तनाव में चला जाएगा और वह कुछ ना कुछ गलत कदम उठा लेगा। किसी बच्चे ने 90%से अधिक नंबर होने पर भी सुसाइड कर लिया। जब 90% से ऊपर का वाला बच्चा ये सब कर रहा है तो जिसके कम मार्क्स है और जो फेल हो गया है उनकी तो बात छोड़ ही दी जाए तो ही बेहतर है। बच्चों पर नंबर का और पोजीशन का स्ट्रेस ने बनाए मेरी सब स्कूल टीचर और बच्चों के माता-पिता से निवेदन है कि बच्चों को समझें उनके अंदर की खूबी को समझें हो सकता है जो खूबी आपके बच्चे में हो वो किसी और में न हो और उनका अच्छे करियर विकल्प का चयन करने में उनकी मदद करें ना कि किसी दूसरे के साथ उनकी तुलना कर उनके मनोबल को तोड़ें। क्या नंबर लेने मात्र से उनको सारी खुशियां मिल जाएगी? एसे तो उनकी आजादी उनका बचपन उनकी सोच सब का दायरा बिल्कुल सीमित हो जाएगा। कम से कम मां-बाप को तो अपने बच्चों को समझना चाहिए उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचानी चाहिए उनके सामने बार-बार रिजल्ट की बातें ना करें पढ़ाई के साथ-साथ उनके अन्य रूचि और जो खेल है या कला है उसमें भी बच्चों का उत्साहवर्धन करें । अपने बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव न बनाएं और उनको दिमाग पर बोझ ना डालें ताकि उनके जो ज्ञान का दायरा बढ़ सके  सिर्फ मार्क्स ही सब कुछ नहीं होता नंबरों के पीछे दौड़ा-दौड़ा कर खुद अपने बच्चों को अपने ही हाथों से खो देंगे उनका आत्म विश्वास बने उनको कमजोर ना बनाए। 


गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
 वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।


 



ऐसे में ये स्टोरी उन माता-पाता के लिए है जिनके बच्चों के नंबर बोर्ड एग्जाम में कम आए हों। ऐसे माता-पिता से ये अपील है कि वे अपने बच्चों को डांटने से पहले ऐसे लोगों की कहानी सुनाएं जो असफल होने के बावजूद सफल हुए।


रबिंद्रनाथ टैगोर 
भारत की ओर से इकलौते नोबल पुरस्कार जीतने वाले महान क़वि और साहित्यकार रबिंद्रनाथ टैगोर स्कूल में फेल हो गए थे। उनके शिक्षक उन्हें पढ़ाई में ध्यान न देने वाले छात्र के तौर पर पहचानते थे। बच्चे उन्हें चिढ़ाते थे। बाद में वही टैगोर देश का गर्व साबित हुए। उनका लिखा साहित्य देश के सर्वश्रेष्ठ साहित्यों में से एक है। रबिंद्रनाथ टैगोर ने ही लिखा था कि "हर ओक का पेड़, पहले ज़मीन पर गिरा एक छोटा सा बीज होता है।"


रुक्मिणी रायर 
चंडीगढ़ में पैदा हुई रुक्मिणी रायर ने 2011 में आईएएस परीक्षा में देश में दूसरा स्थान हासिल किया था। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से मास्टर्स डिग्री लेने के बाद उन्होंने फर्स्ट टाइम में यह कामयाबी हासिल की थी। रुक्मिणी की कामयाबी इसलिए भी खास है, क्योंकि उन्होंने बिना किसी कोचिंग के यह उपलब्धि अपने नाम की। 6वीं क्लास में फेल हो गई थीं रुक्मिणी। उसके बाद वे अपने घर वालों और अध्यापकों के सामने आने से कतराने लगीं। लेकिन बाद में उन्होंने कठिन परिश्रम के बल पर सफलता अर्जित की।


अल्बर्ट आइंस्टीन 
दुनिया में जीनियस के तौर पर पहचाने जाने वाले वैज्ञानिक आइंस्टीन चार साल तक बोल और सात साल की उम्र तक पढ़ नहीं पाते थे। इस कारण उनके मां-बाप और शिक्षक उन्होंने एक सुस्त और गैर-सामाजिक छात्र के तौर पर देखते थे। इसके बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और ज़्यूरिच पॉलिटेक्निक में दाखिला देने से इंकार कर दिया गया। इन सब के बावजूद वे भौतिक विज्ञान की दुनिया में सबसे बड़ा नाम साबित हुए।


वॉल्ट डिज़्नी 
वॉल्ट डिज़्नी एक अमेरिकन सिनेमा के निर्माता, निर्देशक, सिनेमा लेखक, आवाज़ कर्ता और कार्टून फिल्म बन्ने वाले दिग्दर्शक थे। उन्होंने डिज्नी की स्थापना की। इनकी संस्था आज वाल्ट डिज्नी कंपनी के नाम से जानी जाती है। डिज्नी ने अपना पहला बिजनेस खुद के ही घर में शुरू किया और उनका निर्माण किया पहला कार्टून असफल भी हुआ। उनके पहले पत्रकार सम्मलेन में, एक अखबार के संपादक ने उनका उपहास भी किया क्यों की उनके पास एक अच्छी सिनेमा बनाने की कल्पना नहीं थी।


थॉमस एडीसन 
क्या आप 1000 बार असफलता प्राप्त करने के बाद सफलता की आशा कर सकते है? एक इंसान ने की थी, जिसकी बदौलत हमारे जीवन में आज उजाला है। यह इंसान है थॉमस अल्वा एडिसन। हम इन्हें सिर्फ लाईट बल्ब ही नहीं परंतु और भी कई महत्त्वपूर्ण खोजों के लिए जानते है। इन्होंने सफलतापूर्वक लाईट बल्ब बनाने से पहले 1000 निष्फल प्रयत्न किए थे। बचपन में इन्हें उनके शिक्षक द्वारा बताया गया था की वे कभी भी जीवन में आगे नहीं बढ़ पाएंगे, क्योंकि उनका दिमाग कमजोर है। आज उस शिक्षक का नाम किसी को याद नहीं, लेकिन एडिसन को सभी लोग जानते हैं।


स्टीवन स्पिलबर्ग 
दु‌निया में अरबों कमाने वाली जुरासिक पार्क जैसी फिल्म के निर्देशक स्पिलबर्ग को एक बार नहीं तीन बार कैलिफॉर्निया की साउदर्न यूनिवर्सिटी ऑफ थियेटर एंड टेलीविज़न में दाखिले से इंकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने कहीं और से शिक्षा ली और अपने काम के लिए बीच में पढ़ाई छोड़ दी। 35 साल बाद वो दोबारा उस कॉलेज में पहुंचे और ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।



चार्ल्स डार्विन 
इंसानी विकास सिद्धांत के जनक के तौर पर पहचाने जाने वाले चार्ल्स डार्विन को अक्सर सपने में खोए रहने वाला आलसी जैसे शब्दों को सुनना पड़ता था। स्कूल के शुरुआती दिनों में उन्हें कमजोर माना जाता था। उन्होंने लिखा कि मेरे पिता और मुझे सिखाने वाले मुझे बेहद साधारण और औसत बुद्धिमता का मानते थे।


विंस्टन चर्चिल 
विंस्टन चर्चिल 6वीं कक्षा फेल हो गए थे, लेकिन उन्होंने कठिन परिश्रम करना कभी नहीं छोड़ा. वो प्रयत्न करते रहे और दुसरे विश्व युद्ध के दौरान यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बने। चर्चिल साधारणतः ब्रिटेन और दुनिया के इतिहास में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नेता थे। बीबीसी के 2002 के चुनाव में जिसमे 100 महानतम ब्रिटिश लोगो का चुनाव होना था उसमे सभी ने चर्चिल को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया।


जैक मा 
आज लोग मुझे दुनिया के अरबपतियों में शुमार करते हैं लेकिन बहुत कम लोगो को पता है की मैं प्राइमरी स्कूल में 2 बार और मीडिल स्कूल में 3 बार फेल हुआ था फिर भी मैं हार्वर्ड में एडमिशन लेना चाहता था। ये शब्द चीन के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक जैक मा के हैं। जैक मा ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के संस्थापक हैं। स्कूल में जैक ठीक से बोल भी नहीं पाते थे। रीब 30 नौकरी से रिजेक्ट होने के बाद जैक मा ने अलीबाबा की शुरुआत की और सफलता का स्वाद चखा। आज ये इंटरनेट कंपनी ज़बरदस्त फ़ायदे में है और दुनिया के ई-कॉमर्स बाज़ार में सबसे आगे है।


 


 


 


 


 


 


 



 


 


 


 


 


अतुल्य भारत चेतना के इस पहल से साहित्य, कला, एवं अभिनय के क्षेत्र में रुचि रखने वालों में खुशी की लहर...


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