प्रिय मित्र मानव,
तुम्हारा पत्र मिला जिसमें तुमने बढ़ती हुई प्राकृतिक विपदाओं और इससे मनुष्य की दुश्वारियों पर अत्यधिक चिंता प्रगट की है। बंधु मेरे,तुम्हारी तमाम चिंतायें वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक हैं,पर थोड़ा ठहरकर तुम हीं सोचो..कौन है अपराधी इसका? क्या हम मानव अपने दिलो-दिमाग पर दस्तक देकर अपनी गलतियाँ सच के दर्पण में देखना गवारा करेंगे?पर छोड़ो यार...इतना ज़्यादा मानसिक मेहनत-मशक्कत कौन करना चाहता है?सभी भौतिकता के वृत्तीय दायरे में स्वयं को महफ़ूज़ समझते हैं।
जब " बन्दर " की संतानों ने ब्रह्मांड के अस्तित्व को नकार इसे खिलौना-मात्र हीं समझ लिया है तो ख़ुद को कैसे बरक़रार रख पायेंगे? विनाश का दरवाज़ा खुलने हीं वाला है।तब इसके हज़ारों कालदूत अचानक हमारे इर्द-गिर्द मंडरायेंगे और फ़िर खींच देंगें विनाश की काली लकीरें!वस्तुतः,आत्मविनाश की जोरदार तैयारी में लगे हैं हम सभी ....एक क़यामत का महोत्सव मनाने को उद्यत!पर्यावरण का मरण कर व गिरि-वन-विपिन विनष्ट कर हम अपने हीं पैरों पर कुठार चलाने जा रहे हैं।एक विस्फोट होगा.....
कालचक्र थम जायेगा।विरंच अपनी अमूल्य कृति के नष्ट होने पर दहाड़ मारकर रोयेगा अवश्य,पर होठों पर एक विद्रूप मुस्कान भी होगी कि अच्छा ही हुआ...!उसने भूलवश मानव रुपी जीव को सर्वश्रेष्ठ बुद्धि प्रदान कर रचा ज़रूर था,लेकिन उसने रचना की फूलवारी सजाने के सारे सुहाने सपने बिखेर दिये!ईश्वर ने सोचा था कि अपनी विवेक-शक्ति के सहारे मनुष्य सही-गलत की पहचान करने में सक्षम हो सकेगा,लेकिन उसे क्या पता था कि अपने अहम के बोझ तले उसे कुचल डालेगा!
मैं तो कहता हूँ मित्र,कि अब भी वक़्त है।विनाश के इन संकेतों को समझकर अगर हम चेत जायें तो मानवता बची रह सकती है।अगर हम प्रकृति की कराहती रूह के क़हर से बचना चाहते हैं और उन चीर अपहृत नग्न पहाड़ियों से शर्मिंदगी का इज़हार करना चाहते हैं,तो सिर्फ़ माफीनामा से काम नहीं चलने वाला!हमें प्रकृति के पास पूर्ण श्रद्धा-भाव के साथ अवनत होकर जाना होगा...उसके दिल में नेह का बीजारोपण करना होगा...उसे पश्चाताप के अश्क़ों से सींचना होगा...ताकि उसकी क्रोधाग्नि बुझ सके।जब नन्ही कोंपलें प्रस्फूटित हों,तब जी-जान से उसकी रक्षा की ज़िम्मेदारी निभानी होगी।
तभी यह धरती और हमारा परिवेश स्वर्ग सरीखा बन पायेगा और आत्मविनाश की ओर अग्रसर हमारे कदम मानवता की मंदाकिनी-प्राप्ति हेतु मुड़ सकेंगे।उस सुधाजल से से ही हमारा कलुषित मन और कृत्य पुनः पवित्र हो सकेगा।
-राजीव नयन
अतुल्य भारत चेतना के इस पहल से साहित्य, कला, एवं अभिनय के क्षेत्र में रुचि रखने वालों में खुशी की लहर...
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